2 Type New Maa Kali Chalisa PDF | शत्रु नाशक काली चालीसा |
Maa Kali Chalisa PDF | शत्रु नाशक काली चालीसा | अपने सभी भक्तों के कष्टों को हरने वाली, सबको अपनी कृपा दृष्टि से अपार धन धान्य प्रदान करने वाली माँ भगवती श्री कालीघाट दक्षिणेश्वर कोलकाता स्थित काली देवी चालीसा।
श्री शत्रु नाशक काली चालीसा
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार,
महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार,
अरि मद मान मिटावन हारीमुण्डमाल गल सोहत प्यारी,
अष्टभुजी सुखदायक मातादुष्टदलन जग में विख्याता ।।
भाल विशाल मुकुट छवि छाजैकर में शीश शत्रु का साजै,
दूजे हाथ लिए मधु प्यालाहाथ तीसरे सोहत भाला,
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचेछठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे,
सप्तम करदमकत असि प्यारीशोभा अद्भुत मात तुम्हारी ।।
अष्टम कर भक्तन वर दाताजग मनहरण रूप ये माता,
भक्तन में अनुरक्त भवानीनिशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी,
महशक्ति अति प्रबल पुनीतातू ही काली तू ही सीता,
पतित तारिणी हे जग पालककल्याणी पापी कुल घालक ।।
शेष सुरेश न पावत पारागौरी रूप धर्यो इक बारा ,
तुम समान दाता नहिं दूजाविधिवत करें भक्तजन पूजा,
रूप भयंकर जब तुम धारादुष्टदलन कीन्हेहु संहारा,
नाम अनेकन मात तुम्हारेभक्तजनों के संकट टारे ।।
कलि के कष्ट कलेशन हरनीभव भय मोचन मंगल करनी,
महिमा अगम वेद यश गावैंनारद शारद पार न पावैं,
भू पर भार बढ्यौ जब भारीतब तब तुम प्रकटीं महतारी,
आदि अनादि अभय वरदाताविश्वविदित भव संकट त्राता ।।
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हाउसको सदा अभय वर दीन्हा,
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशाकाल रूप लखि तुमरो भेषा,
कलुआ भैंरों संग तुम्हारेअरि हित रूप भयानक धारे,
सेवक लांगुर रहत अगारीचौसठ जोगन आज्ञाकारी ।।
त्रेता में रघुवर हित आईदशकंधर की सैन नसाई,
खेला रण का खेल निरालाभरा मांस-मज्जा से प्याला,
रौद्र रूप लखि दानव भागेकियौ गवन भवन निज त्यागे,
तब ऐसौ तामस चढ़ आयोस्वजन विजन को भेद भुलायो ।।
ये बालक लखि शंकर आएराह रोक चरनन में धाए,
तब मुख जीभ निकर जो आईयही रूप प्रचलित है माई,
बाढ्यो महिषासुर मद भारीपीड़ित किए सकल नर-नारी,
करूण पुकार सुनी भक्तन कीपीर मिटावन हित जन-जन की ।।
तब प्रगटी निज सैन समेतानाम पड़ा मां महिष विजेता,
शुंभ निशुंभ हने छन माहींतुम सम जग दूसर कोउ नाहीं,
मान मथनहारी खल दल केसदा सहायक भक्त विकल के,
दीन विहीन करैं नित सेवापावैं मनवांछित फल मेवा ।।
संकट में जो सुमिरन करहींउनके कष्ट मातु तुम हरहीं,
प्रेम सहित जो कीरति गावैंभव बन्धन सों मुक्ती पावैं,
काली चालीसा जो पढ़हींस्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं,
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बाकेहि कारण मां कियौ विलम्बा ।।
करहु मातु भक्तन रखवालीजयति जयति काली कंकाली,
सेवक दीन अनाथ अनारीभक्तिभाव युति शरण तुम्हारी
॥ दोहा ॥
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ,
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ।।
।। शत्रु नाशक काली चालीसा सम्पूर्णम ।।
माँ भगवती द्वितीय काली चालीसा – Maa Kali Chalisa
॥ दोहा ॥
जयति कपाली कालिका,कंकाली सुख दानि।
कृपा करहु वरदायिनी,निज सेवक अनुमानि॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय काली कंकाली।जय कपालिनी, जयति कराली॥
शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा।जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा॥
आर्या, हला, अम्बिका, माया।कात्यायनी उमा जगजाया॥
गिरिजा गौरी दुर्गा चण्डी।दाक्षाणायिनी शाम्भवी प्रचंडी॥
पार्वती मंगला भवानी।विश्वकारिणी सती मृडानी॥
सर्वमंगला शैल नन्दिनी।हेमवती तुम जगत वन्दिनी॥
ब्रह्मचारिणी कालरात्रि जय।महारात्रि जय मोहरात्रि जय॥
तुम त्रिमूर्ति रोहिणी कालिका।कूष्माण्डा कार्तिका चण्डिका॥
तारा भुवनेश्वरी अनन्या।तुम्हीं छिन्नमस्ता शुचिधन्या॥
धूमावती षोडशी माता।बगला मातंगी विख्याता॥
तुम भैरवी मातु तुम कमला।रक्तदन्तिका कीरति अमला॥
शाकम्भरी कौशिकी भीमा।महातमा अग जग की सीमा॥
चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री।ब्रह्मवादिनी मां गायत्री॥
रूद्राणी तुम कृष्ण पिंगला।अग्निज्वाला तुम सर्वमंगला॥
मेघस्वना तपस्विनि योगिनी।सहस्त्राक्षि तुम अगजग भोगिनी॥
जलोदरी सरस्वती डाकिनी।त्रिदशेश्वरी अजेय लाकिनी॥
पुष्टि तुष्टि धृति स्मृति शिव दूती।कामाक्षी लज्जा आहूती॥
महोदरी कामाक्षि हारिणी।विनायकी श्रुति महा शाकिनी॥
अजा कर्ममोही ब्रह्माणी।धात्री वाराही शर्वाणी॥
स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी।मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी॥
नाम रूप गुण अमित तुम्हारे।शेष शारदा बरणत हारे॥
तनु छवि श्यामवर्ण तव माता।नाम कालिका जग विख्याता॥
अष्टादश तब भुजा मनोहर।तिनमहँ अस्त्र विराजत सुन्दर॥
शंख चक्र अरू गदा सुहावन।परिघ भुशण्डी घण्टा पावन॥
शूल बज्र धनुबाण उठाए।निशिचर कुल सब मारि गिराए॥
शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे।रक्तबीज के प्राण निकारे॥
चौंसठ योगिनी नाचत संगा।मद्यपान कीन्हैउ रण गंगा॥
कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि।दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि॥
कर खप्पर त्रिशूल भयकारी।अहै सदा सन्तन सुखकारी॥
शव आरूढ़ नृत्य तुम साजा।बजत मृदंग भेरी के बाजा॥
रक्त पान अरिदल को कीन्हा।प्राण तजेउ जो तुम्हिं न चीन्हा॥
लपलपाति जिव्हा तव माता।भक्तन सुख दुष्टन दु:ख दाता॥
लसत भाल सेंदुर को टीको।बिखरे केश रूप अति नीको॥
मुंडमाल गल अतिशय सोहत।भुजामल किंकण मनमोहन॥
प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी।जगदम्बा कहि वेद बखानी॥
तुम मशान वासिनी कराला।भजत तुरत काटहु भवजाला॥
बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर।जहाँ बिराजत विविध रूप धर॥
विन्धवासिनी कहूँ बड़ाई।कहँ कालिका रूप सुहाई॥
शाकम्भरी बनी कहँ ज्वाला।महिषासुर मर्दिनी कराला॥
कामाख्या तव नाम मनोहर।पुजवहिं मनोकामना द्रुततर॥
चंड मुंड वध छिन महं करेउ।देवन के उर आनन्द भरेउ॥
सर्व व्यापिनी तुम माँ तारा।अरिदल दलन लेहु अवतारा॥
खलबल मचत सुनत हुँकारी।अगजग व्यापक देह तुम्हारी॥
तुम विराट रूपा गुणखानी।विश्व स्वरूपा तुम महारानी॥
उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण।करहु दास के दोष निवारण॥
माँ उर वास करहू तुम अंबा।सदा दीन जन की अवलंबा॥
तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई।ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई॥
विश्वरूप तुम आदि भवानी।महिमा वेद पुराण बखानी॥
अति अपार तव नाम प्रभावा।जपत न रहन रंच दु:ख दावा॥
महाकालिका जय कल्याणी।जयति सदा सेवक सुखदानी॥
तुम अनन्त औदार्य विभूषण।कीजिए कृपा क्षमिये सब दूषण॥
दास जानि निज दया दिखावहु।सुत अनुमानित सहित अपनावहु॥
जननी तुम सेवक प्रति पाली।करहु कृपा सब विधि माँ काली॥
पाठ करै चालीसा जोई।तापर कृपा तुम्हारी होई॥
॥ दोहा ॥
जय तारा, जय दक्षिणा,कलावती सुखमूल।
शरणागत ‘भक्त ‘ है,रहहु सदा अनुकूल॥